पिता
जात
कई कहानियां होंगे तुम्हारे पोथी में
मेरे कानों में कांसे का घोल है ।
सिर्फ झुकी आँखों से
तुम्हारी लंबी परछाई को देखता हूँ
और महसूस करता हूँ
एक हाथ के व्यास में
सिमटी हुयी औरत को।
समन्दर और मैं
बुद्धम शरणं गच्छामि !
राजगीर ,एक पावन भूमि , बुद्ध का निवास स्थान !
विश्व शांति स्तूप , आज के अशांत माहौल में यह दरवाजा विश्व से शांति की अपील करता दिख रहा है। ऐसे स्थल ही भारतीय संस्कृति के ताना – बाना को और सुदृढ़ करते हैं।
भगवान बुद्ध की स्वागत मुद्रा वाली ये तस्वीर ,अपने आप में सब कुछ बयां कर रही हैं – भारत के सर्वग्राही , सहिष्णु, संयम समाज ।
ये प्रतिमा उद्घोषणा कर रही है – ‘ मध्यम पदिपदा ‘ । बुद्ध के इस विचार की प्रासंगिकता आज के दौर में बढ़ गयी है ।
और अंत में उनकी ये उद्घोषणा —
” मैं सदैव यहाँ (राजगीर) गृद्धकूट में निवास करते हुए समाज का पथ प्रदर्शन करता रहूँगा । ”
शांति ! शांति !! शांति !!!
The Journey Begins
Thanks for joining me!
Good company in a journey makes the way seem shorter. — Izaak Walton